Sunday, January 6, 2019

America 1 (New Series)
Ice age


ठोस वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि पिछले करोड़ों सालों से धरती पर हर एक लाख साल के बाद Ice Age आती है जो चालीस हज़ार साल तक रहती है; यानि यह सिलसिला एक लाख साल तक चलता है। तब पूरा अमेरिका देश, बहुत सा यूरोप और कुछ एशिया महाद्वीप बर्फ से ढँक जाया करता है। ऐसा क्यों होता है, इसका असल कारण अभी तक मालूम नहीं हो सका मगर यह होता जरूर है। पिछली Ice-Age, सिर्फ 11,000 साल पहले ख़तम हुई थी तभी से यह आज के अमेरिका की धरती का रूप बना था। मुख्य सिद्धांत यह है की समुन्द्र धरती की carbon dioxide चूसते चले जाते हैं और जब धरती के वातावरण से यह गैस लुप्त हो जाती है तो धरती ठंडी होनी शुरू हो जाती है और आधी धरती तो जम ही जाया करती है। अब समुन्द्र जितनी carbon dioxide गैस चूस सकता है चूस लेता है। धरती पर ज्वालामुखी इत्यादि सदा ही सक्रीय रहते हैं और फिर से जब यह गैस वातावरण में एकत्र होने लगती है तो धरती फिर से गर्म होने लगती है। समुन्द्र पिघलने लगते हैं और धरती और भी गर्म होती चली जाती है और यह धरती के गर्म और ठन्डे होने का सिलसिला चलता रहता है।
अब मानव निर्मित carbon dioxide धरती पर बहुत बढ़ रही है। धरती की तहों के नीचे से अरबों टन तेल और गैस निकाल कर मानव द्वारा ईंधन के रूप में जलाई जा रही है। समुन्द्र कार्बन डाइऑक्साइड को चूस रहे हैं मगर धरती पर भी यह गैस और भी अधिक बढ़ती जा रही है इसलिए गर्मी बढ़ रही है।
असल में मानव भी क़ुदरत का ही हिस्सा है। जो भी मानव करता है या कर रहा है या करेगा यह भी कुदरत के डिज़ाइन का हिस्सा है। कुदरत के सब बंदे। सृष्टि की मर्ज़ी के बिना इस धरती पर एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। मानव सोचता है की उसने किया या वो करेगा मगर यह सब सृष्टि कर रही है।
अगर अमेरिका और यूरोप में बर्फ़ें जमीं थी तो अफ्रीका और भारत जैसे स्थानों पर गर्मियों का तापमान आजकल की सर्दियों का सा था। 70 लाख साल पहले बन्दर जैसे आदमी इस धरती पर आ चुके थे। 70 लाख का मतलब है कि आदमी धरती का यह शीतकालीन मौसम कम से कम 70 बार देख चुका है। हिमालय के नीचे भी कम से कम 200 किलोमीटर का इलाका बर्फ में जमा हुआ था यानि की उत्तरप्रदेश, पंजाब, बिहार और आधा बंगाल भी जमे हुए थे। गंगा और यमुना के उत्तर का इलाका सभी बर्फ में जमा हुआ था। जितना हम धरती के दक्षिण में जायें उतनी ही सर्दी कम थी और रहना जीना संभव था इसलिए अफ्रीका में भूमध्य रेखा के काफी नीचे ही जाकर आज का आदमी पैदा हो सका।
तो आज का अमेरिका सिर्फ 11000 साल पुराना है। असल में मानव ही इतना पुराना है। इससे पीछे किसी भी सभ्यता के कोई नाम-निशान नहीं मिलते क्योंकि धरती पर आज के मौसम भी 11000 साल पुराने हैं। अब धरती से जितना ईंधन निकल रहा है यह दो तीन सो साल में धरती से पूरा ख़त्म हो जायगा और तब शायद धरती पर फिर से यह carbon dioxide का बैलेंस बनने लगेगा। अब लाखों या करोड़ों सालों के चक्कर के दर्मियान शायद कुछ सैंकड़ों सालों में इस पृथ्वी पर जितना ईंधन जला इसका धरती पर कुछ बहुत असर नहीं होने वाला। यानि कि 30,000 साल के बाद मानव फिर से ज़ीरो पर आ जायगा। कुछ मानव बचेंगे और फिर से कानस्य योग होगा, फिर लोह युग होगा फिर से सभ्यतायें पैदा होंगी। फिर से ब
फिर से धर्म पैदा होंगे, फिर से हर वस्तु का दोबारा से आविष्कार होगा और फिर से धरती खेती के लायक बनेगी इत्यादि इत्यादि इत्यादि। ऐसा ही कुछ वैदिक धर्म में कहा गया है की यह सिलसिला दोबारा शुरू होगा। ज़ीरो से।

वैज्ञानिक भाषा में यह सब कुदरत का सिलसिला है या खेल है। वैदिक भाषा में ब्रम्हा विष्णु महेश हैं। एक सभी कुछ पैदा करता है दूसरा इसे चलता रखता है और तीसरा इसे ख़तम करता है ताकि सभी कुछ दोबारा से जीरो से शून्य से। 
अव्वल अल्लाह नूर उपाया, कुदरत दे सब बन्दे,
एक नूर ते सब जग उपज्या कौन भले कौ मंदे ||

और फिर अगर मानव सात लाख साल से इस धरती पर है तो सात लाख साल पहले का मानव बनमानुष था। बीस हज़ार साल पहले का मानव भी तक़रीबन चिम्पांजी जैसा था। जब दोबारा Ice Age आएगी और फिर यह सिलसिला फिर से एक लाख साल तक चलेगा तो मानव पर फिर से कँबल जैसे बाल आ जायँगे, मानव फिर से हनुमान, बाली और सुग्रीव वाली दुनियां में पहुंच जायगा। अभी रामायण को सिर्फ पांच सात हज़ार साल ही तो हुए हैं जब मानव तो था ही और अर्ध मानव भी थे। वाइकिंग के ज़माने तक भी अर्ध मानव होते थे, इसके ठोस साबुत हैं।
तो बात अमेरिका की हो रही और मैं भटक कर हज़ारों साल पीछे चला गया। आज से 11,000 साल पहले धरती से धीरे धीरे बर्फ़ें पिघलीं थीं। अभी बर्फों का पिघलना जारी ही था तब अफ्रीका, एशिया, यूरोप और अमेरिका महाद्वीप अभी बर्फ के पुल से जुड़े हुए थे। इसी बर्फ के पुलों पर चलकर आदमी पूरी दुनियां में पहुंचा। 23000 साल पहले रूस के साइबेरिया और अमेरिका के अलास्का में अभी तक बर्फों का पुल था जिसपर शिकार के जानवरों के पीछे पीछे चलते हुए मानव अमेरिका महाद्वीप पर पहुंचा था और फिर उत्तर से दक्षिण तक फ़ैल गया। भारत में मानव करीब एक लाख साल पहले पहुंचा था। सभी स्थान दक्षिण से उत्तर की तरफ धीरे धीरे बसे थे क्योकि वातावरण में गर्मी दक्षिण से उत्तर की और धीरे धीरे आई थी।
इस धरती पर रहने वाले बहुत से जानवरों को मानव मारकर खा गया और वह जानवर धरती से बिलकुल ही विलुप्त हो गए। इन जानवरों में एक था Manmoth, यह हाथी से कुछ बड़ा मगर शरीफ जानवर हुआ करता था। मानव Manmoth का पीछा करते करते हुए अमेरिका में आया था। यह Manmoth एक विशाल जानवर था जो सर्दियों में जीने का अभ्यस्त हो चूका था, उसका शरीर ऊन की मोटी परत से ढंका था। 4000 साल पहले जब Egypt में पिरामिड बन रहे थे तब तक भी कुछ Manmoth अमेरिका में विचरते थे। Manmoth सर्द मौसम का जानवर था, जो यूरोप से 12000 साल पहले विलुप्त हो चुके थे। आदमी का मुख्य भोजन का स्त्रोत Manmoth ही था और इसकी ऊन और खाल कपड़ों और तम्बू बनाने के काम आती थी। हाथी और Manmoth के जीन 99% मिलते हैं इसलिए शायद किसी दिन Manmoth के DNA से हथनी के गर्भ से Manmoth का जन्म करवाया जा सकेगा। कई विश्विद्यालयों में इस प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है।
जब धरती गर्म हुई तो नम भी हो गयी। बड़े बड़े ग्लेशियर बनने से समुन्द्र का पानी कम से कम दो किलोमीटर नीचे हो गया इसलिए धरती पर अभी भी बहुत से स्थानों पर समुंद्री जानवरों के जीवाश्म मिलते हैं जबकि वहां से समुन्द्र सैंकड़ों मील दूर है। अमेरिका का पूरा ग्रैंड कैनियन कभी पानी के नीचे था। भारत का गुजरात और राजस्थान भी कभी समुन्द्र के पानी के नीचे थे। इसीलिए स्थलों पर समुंद्री जीवों के जीवाश्म पाये जाते हैं। इसीलिए इन रेगिस्तानों की धरती नमक से लदी हुई है। जहाँ भी खोदो वहां पर नमक है। नीचे का पानी भी नमकीन है।
मानव का विकास सिर्फ 11 हज़ार साल पुराना है क्योंकि 11000 साल पहले ही भूगोलिक परिस्थितियां उत्पन हुईं थीं कि कोई सभ्यता इत्यादि विकसित हो सके। हाँ मानव असल में खुद कुछ लाख साल पुराना है।
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मैं अमेरिका में किसी Manmoth या अन्य जनावर का पीछा करने नहीं आया था। हम तीनों भाइयों का स्वप्न था की अपनी माँ की तानाशाही से कही बहुत दूर किसी नई दुनियां को अपनायेंगे। मैंने अमेरिका में हवाई जहाज़ से आया था क्योंकि आजकल समुंद्री जहाजों से लम्बी दूरियों का सफर अब गुज़रे ज़माने की घटना हो चली है। 
तो बात वहीँ से शुरू हो जहाँ पर रुक गयी थी। 
मास्टरजी ने मुझसे पुछा था, “बेला का क्या इंतज़ाम है।”
“बेला कौन?”
“ओये कंज़रे बेला की बेला होने वाली है। तेरे घर में भारत के महान बजरंगी पधारे हुए हैं और तूने बेला वेला का इंतज़ाम रखा है के नहीं।”
“मतलब कि पेग का ?”
“ओये कंजर, ओये कंजर। तुझे ये भी मैं बताऊँ।”
मैंने मास्टर जी को आधी बोतल स्कॉच की दिखाई थी।”
मास्टर जी चीखे थे, “हम आठ कंजरों के लिए यह चिड़िया का चुग्गा। कुछ शर्म कर कंजर।”
“तो मैं और ले आता हूँ मास्टर जी। सभी बजरंगी अभी जागे नहीं हैं। बेला की बेला की बेला को अभी कुछ बेला है।”
“चल कंजर, मैं भी तेरे चलता हूँ। फिर रात को इनके लिए मैं चिकन बनाऊंगा।”
जबकि दोपहर को बकरा बनाना मेरे ही पल्ले पड़ा था।
“इनसे पूछ तो लें, शायद इनका खिचड़ी या मूंग की दाल खाने का मन हो।”
मास्टर जी चिल्लाये थे, “ओये कंजर ओये कंजर। कुछ शर्म कर। हमारे घर में सभी को जुकाम न होता तो मैं बजरंगियों को तेरे जैसे ख़डूस के घर में लाता ही नहीं।”
मैंने अपना सर ठोंक लिया था। लो कर लो बात ........ जबकि मैं पहलवानों को मास्टरजी से मिलवाने के लिए इनके घर पर ले कर गया था।

शाम को सात बज़े बेला की बेला शुरू हो गयी थी। मैंने अपने मित्र चमनलाल चार्ली को भी पहलवानों से मिलवाने के लिये बुला लिया था। चमनलाल चार्ली की बिस्कुटों की फैक्ट्री थी, आदमियों के बिस्कुट तो उसके ज्यादा नहीं बिकते थे मगर उन्हीं बिस्किटों को जब से हमने डॉग बिस्कुट का लेबल लगाकर बेचना शुरू किया था तो उसकी फैक्ट्री अब घाटे से बाहर निकलने के आसार हो चले थे। आदमियों के बिस्कुट पर डॉग बिस्कुट कह कर बेचने का सरकार को भी कोई इतराज़ नहीं था हाँ अगर डॉग बिस्किटों को आदमियों के बिस्कुट कह कर कोई बेचे तो शायद बात अलग होती होगी।
मैंने चमनलाल चार्ली को भी अचम्भा देने के लिए अपने घर पर बुला लिया था कि एक पेटी बिस्कुटों की लेकर आ जाये। जब उसने डोरबैल बजाई थी; मैंने दरवाज़ा खोला था तो वो ही सुबह वाला एक्शन रीप्ले होते होते बचा था जब उसने एक साथ छह पहलवानों को मेरे लिविंग रूम में देखा था। सुबह तो संध्या शर्मा वैन में बैठने के बाद वैन में एक साथ छह पहलवान देखकर बेहोश हो गयी थी। मैंने तो सोचा था कि खुश होगी और मुझे शाबाशी देगी। मेरे कुछ नंबर बन जायँगे मगर वो डरकर बेहोश हो गयी थी।
उधर चमनलाल चार्ली को देखकर सभी पहलवानों का भी मुँह खुला का खुला रह गया था। गोलमटोल और नाटे चमनलाल चार्ली को देखकर सभी पहलवान और मास्टर जी भी हैरान हो गए थे। 
रुस्तमें हिन्द ने दारा सिंह के पोते के कान में कहा था, “यह तो गट्टू पहलवान का डुप्लीकेट है।” 
यह मुझे भी सुनाई दे गया था। 
मास्टर जी रेंगे थे, “बब बब गग ग गट्टू क क कंजर।”
सिर्फ टीवी की आवाज़ आ रही थी, सभी खामोश थे। 
मैंने ख़ामोशी तोड़ी थी, “यह चमनलाल चार्ली है, मेरा मित्र। इसकी बिस्कुटों की फैक्ट्री है।”
सभी पहलवान अभी तक चमनलाल को घूर रहे थे और चमनलाल के माथे पर पसीना था। मैंने चमनलाल को पहलवानों से मिलवाया था। “यह रुस्तमे-हिन्द जी हैं, यह हरियाणा केसरी साहब हैं, यह बुंदेले-आज़म ..... यह जनाब हैं दारा सिंह के पोते और यह जनाबे आली ..... यह मास्टर जी हैं कभी चंदगीराम को धूल चटा चुके हैं।”
पहलवान अभी तक सकते में थे। 
मैंने चमनलाल को एक पेग बना कर दे दिया था। मुझे असल में चमनलाल को बुलाने का पछतावा होने लगा था। वो दूसरा पेग पीने के बाद इमोशनल होकर रोने धोने लगता था।

अभी पहलवान और चमनलाल सभी एक दूसरे के अभ्यस्त हुए ही थे कि मेरे फ़ोन के घंटी बजी थी। 
एक पहलवान ने फ़ोन सुनकर मेरे हाथ में दे दिया था, “कोई अली है।”
मैंने कहा था, “हल्लो।”
“मैं अली; ज़फर का भनवइया।”
“कैसे याद किया अली साहब।”
अली साहब जोर से चीखे थे, “अस्सां तुहाडा जहाज़ मार दित्ता। ओये खबरां सुन तू आज़ज़ दी।”
“अली साहब मैं कुछ समझा नहीं।”
अली साहब ने विस्तार से मुझे बताया था कि पाकिस्तान ने कारगिल के ऊपर भारत का लड़ाकू जहाज़ Mig-27 गिरा दिया है। अली साहब को अथाह ख़ुशी थी। 
“मुबारक हो अली साहब।”
“ओये तू मेरी बिल्ली वापिस कर दे। असि पाकिस्तानी तुहानू थल्ले ला देवांगे।”
“ओये हमारा Mig-27 वापिस दे दो और अपनी बिल्ली ले जाओ।”
"ओये तेरी भेण दी *^%"& तेरी माँ दी *&^%$"
"एक हाथ से दो - दूसरे हाथ से लो।"
"ओये मैं देख लूंगा तेनु।"
यह कह कर अली साहब ने फ़ोन पटख दिया था। शायद अली साहब की ख़ुशी रफूचक्कर हो गयी थी।

बिल्लियां मेरी जिंदगी में अक्सर चक्कर लगाती ही रहती हैं।
किसे मालूम था कि कभी एक दूसरी बिल्ली मेरी जिंदगी ख़राब कर जायगी।
जिंदगी ने जिंदगी भर गम दिये।
To be continued ………………


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